हमारे लिए ऊर्जा के परम-स्रोत...

Thursday 17 May 2012

वर्जीनिया वुल्फ़




कुछ डरते तुझसे
कुछ करते स्नेह अपार
हे अंग्रेजी की
महान उपन्यासकार!
स्ट्रीम ऑफ कांशसनेस पर किया चमत्कार
अंग्रेजी साहित्य में पाई प्रतिष्ठा तूने अपार

पुरूष वर्चस्व के सामने कभी न झुकने वाली
महिलाओं के हितों हेतु निरंतर लडने वाली
कितनों ने ही तेरे खिलाफ तब साजिश रचाई
अपने लेखन से स्वयं तूने अपनी पहचान बनाई
मरी माँ और किया सभी का तूने पोषण
बचपन में ही हुआ तेरे संग यौन-शोषण
जीवन भर तू कहाँ उससे उभर सकी
हर कहीं लेखन में उसकी छाया दीखी
प्रेम-संबंधों के माया जाल ने तुझे भरमाया
कहाँ मिला वो कभी तुझे जो तूने चाहा
रही तरसती जीवन भर पाने को बच्चे
किए स्वीकृत जीवन ने दिए जो गच्चे
और एक दिन फिर अनकहे दर्दों की भोगी
बन गई अचानक तू एक मानसिक रोगी
किए बहुत उपचार मगर ना हालत सुधरी
मन की गति जो तेरी एक बार बिगडी
सहा सभी चुपचाप जो जीवन में तूने पाया
यूँ भी भावनाओं को तेरी कहाँ कोई समझ पाया
एक समय के बाद सभी ने तुझसे नाता तोडा
किया जिसे भी प्यार उसी ने दिल को तोडा
भीतर तेरे इस अहसास के ऐसे काले बादल छाए
मृत्यु-पर्यंत जो कभी ना छँटने पाए
और फिर एक दिन
हुआ वही जो ना होना था
भरा लबालब संयम का
जो तुझमें कोना था
और फिर...
खत्म हुई जीवन से आस
लेकर के एक अतृप्त प्यास
ह्र्दय हो उठा तेरा विदीर्ण
तार आशाओं के सब हुए क्षीण
चल पडी अनंत में होने को विलीन
पहन अपना रोएंदार, फर्र वाला कोट
भरकर जेब में भारी-भारी पत्थर
क्या सोचा होगा उन पल दुःखतर
जब पानी के भीतर गई चुपचाप उतर
फिर आत्मा शरीर से गई निकल
शांत हो गए सब भाव विकल
निष्प्राण और निस्पंद हो चुका तेरा शरीर
जा लगा तीन दिवस बाद आउज नदी के तीर

खत्म हो गई यूँ तेरी जीवन लीला
ये सोच दुःख होता कि गम यूँ क्यूँ तुझे मिला
सदा रहेगी लेखन में तू अपने अजर अमर
गाथा कहेंगे तेरी उपन्यास, डायरी और पत्र
अर्पित तुझको करते हम सब
अपने ये श्रद्धा शब्द सुमन        
ऐ वर्जीनिया वुल्फ  
                तुझको हमारा सादर नमन्!!      

Monday 14 May 2012

कविता चली...



हाइकु कविताएं


कविता चली 
लेखक के मन से
पाठक तक

घर से दूर
अक्सर यूँ लगे हो
ज्यों बनवास

पकते फल 
निशाना लगाने को
पुकारते-से

माँ की गोद में
खिलखिलाता बच्चा
जैसे कमल

कविता बही
लेखक के मन से
काग़ज़ पर
   *****