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Sunday 6 November 2011

तुम्हारे बिना


ज़ेहन में
जीवन की किताब से
फडफडाकर खुलता है
अतीत का एक पृष्ठ
और मेरी आँखों के सामने
फैल जाता है वो दृश्य
जब तुम ले चुके थे
इस संसार से विदा
और धू-धू कर जल रही थी
तुम्हारी चिता
तुम्हें कहाँ पता होगा
कि उस वक़्त मेरे भीतर भी
ना जाने कितना ही कुछ
जलकर राख हो गया था-
ना जाने कितनी ही आशाएं
कितने ही स्वप्न
कितनी ही आकांक्षाएं
और कितने ही प्रयत्न
जो तुम्हारे बिना
अधूरे हो गए हैं
सदा-सदा के लिए                                  

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